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निजीकरण: हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) में 15% हिस्सा बेचेगी सरकार

पीएसयू वॉच हिंदी
  • हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) में पन्द्रह फीसदी हिस्सा बेचने की तैयारी में मोदी सरकार

  • सरकार ओएफएस यानी ऑफर फॉर सेल (OFS-Offer For Sale) के जरिए हिस्सा बेचेगी

  • आईपीओ की ही तरह ओएफएस भी निजी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का एक तरीका है

नई दिल्ली/बेंगलूरू: (डिफेंस पीएसयू न्यूज) पीएसयू वॉच को मिली खबर के मुताबिक सरकारी रक्षा उत्पादन कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) में भी सरकार हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है. HAL में अपना 15% पन्द्रह फीसदी हिस्सा बेचने के लिए सरकार ओएफएस यानी ऑफर फॉर सेल (OFS-Offer For Sale) का इस्तेमाल करेगी जिसके ज़रिए शेयर मार्केट में कंपनियों के प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी कम करते हैं. समझिए कि ये आईपीओ के अलावा निजी निवेश हासिल करने का ही एक और तरीका है. भारत का पहला स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस और पहला लड़ाकू हेलीकॉप्टर एलसीएच बनाने से लेकर HAL बाकी लड़ाकू और सिविल एविएशन के लिए विमानों, हेलीकॉप्टरों की डिजाइन, मरम्मत, मेंटेनेंस आदि का भी काम करती है.

आपको बता दें कि नॉन रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए HAL का OFS गुरुवार को खोल दिया जाएगा. ओएफएस के लिए फ्लोर प्राइस 1001 रुपये प्रति शेयर तय किया गया है. फिलहाल HAL में करीब 90% हिस्सेदारी भारत सरकार की है. कंपनी के 7% शेयर भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के पास हैं. ओएफएस के बाद HAL का 80% हिस्सा सरकार के पास बचेगा. हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के बारे में यह भी जानना जरूरी है कि पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान), जीएसएलवी (भू-स्थिर प्रक्षेपण यान), आईआरएस (भारतीय दूरस्थ उपग्रह) तथा इनसेट (भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह) जैसे उपग्रह प्रक्षेपण यानों के निर्माण कार्य के अधीन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में HAL का उल्लेखनीय योगदान रहा है. पूरे देश में की HAL की 16 प्रोडक्शन यूनिट्स और 9 रिसर्च एंड डेवेलपमेंट सेंटर हैं.

क्या है ओएफएस? ओएफएस को ऑफर फॉर सेल कहते है. आईपीओ के अलावा निजी निवेश हासिल करने का यह एक और तरीका है, जिसका उपयोग शेयर बाजार में लिस्‍टेड कंपनियों के प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी को कम करने के लिए करते है. सेक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी सेबी के नियमों के मुताबिक जो भी कंपनी ओएफएस जारी करना चाहती है, उसे इश्यू के दो दिन पहले इसकी सूचना सेबी के साथ-साथ एनएसई और बीएसई को देनी होती है. जो लोग या कंपनी शेयर खरीदने के इच्छुक हैं, वो किस कीमत पर शेयर खरीदना चाहते हैं उसकी जानकारी एक्सचेंज को उपलब्ध करानी होती है. निवेशक अपनी बोली दाखिल करते हैं. उसके बाद कुल बोलियों के प्रस्तावों की गणना की जाती है और इससे पता चलता है कि इश्यू कितना सब्सक्राइब हुआ है. इसके बाद प्रक्रिया पूरी होने पर स्टॉक्स का अलॉटमेंट होता है.

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