चेन्नईः अगर आपकी इच्छाशक्ति में दम हो तो आंखों में चमकते सपने जिंदा भी रहते हैं और साकार भी होते हैं. जोमैटो डेलिवरी बॉय के तौर पर काम करते हुए तमिलनाडु के विग्नेश डीएम ने कभी अपने सपनों की आंच ठंडी नहीं होने दी. आज, वह 'द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड' में एक प्रशासनिक अधिकारी (एओ) के तौर पर काम कर रहा है.
हांलाकि दो लाइन में लिखी गयी ये बात विग्नेश या फिर उस जैसे किसी भी व्यक्ति के लिए इतनी आसान होती नहीं, जितनी आसानी से कह दी जाती है.
तमिलनाडु के धर्मपुरी के रहने वाले विग्नेश डीएम का जन्म ऐसे माता-पिता के घर हुआ था जो शिक्षित नहीं थे लेकिन उन्होंने उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. विग्नेश चेन्नई के राजलक्ष्मी इंजीनियरिंग कॉलेज में सीट सुरक्षित करने में सफल रहे. 2017 में स्नातक होने के बाद, उन्होंने अपने पिता की तबीयत बिगड़ने तक दो साल तक एक निजी कंपनी में काम किया. 2019 में विग्नेश के पिता को दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. ये वो वक्त था जब उस प्राइवेट कंपनी ने उन्हें इंश्योरेंस का कोई लाभ देने से इंकार कर दिया क्योंकि उस कंपनी में बीमा लाभ के लिए किसी कर्मचारी की नौकरी कम से कम तीन साल पुरानी होनी चाहिए.
विग्नेश इतने गरीब घर से आते हैं कि साल 2015 तक उनका या उनके पिता का बैंक अकाउंट भी नहीं था. सरकारी नौकरी करने के बीच अपने खर्चों को प्रबंधित करने के लिए विग्नेश डीएम अंशकालिक ज़ोमैटो डिलीवरी पार्टनर के रूप में नौकरी की. उन्होंने काम के घंटों के आधार पर प्रति सप्ताह 3,000 रुपये से लेकर 10,000 रुपये प्रति माह तक कमाया.
अपने ज़ोमैटो अनुभव को साझा करते हुए विग्नेश बताते हैं कि कैसे कई लोगों का व्यवहार वास्तव में उनके प्रति नरमी भरा होता था.
ज़ोमैटो ने विग्नेश की कहानी ट्विटर पर शेयर की जिसे लोगों ने जमकर पसंद भी किया.
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