गीत के शलाका पुरुष और ग़ज़ल के उस्ताद डॉ कुँअर बेचैन अति विशिष्ट श्रेणी में आते थे. वे अत्यंत विद्वान और सतत् विचारशील थे. 29 अप्रैल 2021 को डॉ बेचैन का देहावसान हो गया.
मंगलेश डबराल की रचनाओं में आपातकाल द्वारा चिह्नित युग, नक्सलवाद की समस्या और छात्र जीवन की अशांति को स्पष्ट देखा जा सकता है। वे पूंजीवाद के अंतर्निहित आशंकाओं, मुक्त बाजार के भ्रम और खतरों से आगाह करते हुए देखे जा सकते हैं