New Delhi/ Bilaspur: वैसे तो ये खबर मौसमी है लेकिन इसने तमाम स्टेकहोल्डर के माथे पर चिंता की रेखाएं खींच दी है. खबर ये है कि मॉनसून की वजह से कोयले के उत्पादन की रफ्तार में गिरावट आ गयी है और इसके साथ ही उत्पादन घटने और तिमाही के लक्ष्य में पीछे रह जाने का डर कोयला कंपनियों को सताने लगा है. क्यों आई गिरावट? गिरावट इसलिए आई क्योंकि बारिश कोयला उत्पादन के लिए अड़चन है. सूत्रों के मुताबिक सिर्फ एसईसीएल की परियोजनाओं में ही कोयला उत्पादन में 2 लाख टन की गिरावट आई है. आपको बता दें कि मई महीने में जब कोल इंडिया चेयरमैन एसईसीएल के दौरे पर गए थे तब साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का उत्पादन 4.50 लाख टन तक था जो अब गिरकर 2.50 लाख टन पर पहुंच गया है.
सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में एसईसीएल को 182 मिलियन टन कोल-प्रोडक्शन का लक्ष्य दिया है. इस हिसाब से अब तक कंपनी में 50 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हो जाना चाहिए था, लेकिन अब तक हुआ है करीब 41 मिलियन टन. जाहिर है, एसईसीएल की मेगा परियोजनाओं में कोयला उत्पादन में 2 लाख टन की गिरावट ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है.
मंत्रालय के दबाव और मॉनसून को लेकर करीब डेढ़ महीने के बचे वक्त ने कोल इंडिया चेयरमैन को तीन महीने के भीतर फिर से छत्तीसगढ़ की कोल माइंस का दौरा करने पर मजबूर कर दिया है. बीते बुधवार को प्रमोद अग्रवाल (आईएएस) ने पहले गेवरा माइंस का निरीक्षण किया और उसके बाद दीपका खदान पहुंचे. वहां अग्रवाल ने पैच पर चल रहे काम का निरीक्षण किया और ओबी प्रोडक्शन का भी काम देखा. निरीक्षण के दौरान अग्रवाल ने एसईसीएल के अधिकारियों से कोल डिस्पैच बढ़ाने का निर्देश दिया. इस काम में आ रही अड़चनों को दूर करने का भी निर्देश दिया. अग्रवाल ने कहा कि कुसमुंडा,दीपका और गेवरा की मेगा परियोजनाएं कोल इंडिया के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.
कोल इंडिया सीएमडी के निरीक्षण के दौरान एसईसीएल के सीएमडी डॉक्टर पीएस मिश्रा, निदेशक तकनीकी एसके पाल, एमके प्रसाद, गेवरा सीजीएम एसके मोहंती, दीपका सीजीएम रंजन पी साह व अन्य उपस्थित रहे.
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